आज बड़े लोगो कि 'स्वप्न सभा' आयोजित हुई,
हर प्रतिष्ठित गली इस वजह सुसज्जित हुई...
सूट-बूट, इत्र, गाडियों का वहाँ बोलबाला था,
हर शख्स का तन गोरा, किन्तु मन काला था...
सुसज्जित टेबलों पर गिलास टकरा रहे थे,
मदिरा पान कर लोगो के सर चकरा रहे थे,,,
बदकिस्मती से मुझे भी इस सभा का निमंत्रण मिला,
पाकर जिसे दिल तो मुरझाया किन्तु चेहरा खिला...
आखिर क्यों नहीं, अब तो मै भी अब धनवान हो गया हूँ,
पहले कुछ भी था, अब तो श्रीमान हो गया हूँ...
उन लोगो के साथ मुझे भी कालेपन में रंगना पड़ा,
व्यर्थ ही नींद त्याग कर सारी रात जगना पड़ा...
चारों ओर पैसो की गंध महक रही थी,
हर शख्स के मुख से लक्ष्मी चहक रही थी...
सब ओर रोशनी की सुन्दर काया का आभास सा था,
किन्तु दूर एक कोने में काला साया कुछ उदास सा था...
उस ओर जाने पर पता चला, शैतानियत मानवता से खेल रही थी,
उस ओर एक बूढी माँ, अपने काबिल बेटे की मार झेल रही थी...
वे 'साहब' उसे निर्ममता से मारते जा रहे थे,
और उनके चारों ओर मुस्कुराते शैतान पास आ रहे थे...
मेरे मन ने प्रश्न किया, क्या इनके मन में भावनाए है ?
अनंत से कही शायद उत्तर मिला, इनके पास तो मात्र धन कल्पनाये है..
मै समझ गया, इस स्वप्न सभा में धन ही सर्वोपरि है,
इन सभी की भावनाए तो बस मरी ही है...
मेरे कदम उस रोशनी से दूर जा रहे थे,
कुछ और नहीं, पर अँधेरे अवश्य पास आ रहे थे...
मन अजीब कश्मकश में घिरने लगा था,
विशाल समुद्र में मैं अकेला गिरने लगा था...
अब मैंने अमीरी का चोगा उतार दिया है,
अपने चेहरे की खुशी को मार दिया है...
नहीं, ऐसी नहीं हो सकती, 'स्वप्न सभा' मेरी ,
उजाले का ढोंग करती, है वास्तव में अँधेरी...
अब मिट चली है उन शख्शों की प्रभा,
अपने वास्तविक रूप में आने लगी है, 'स्वप्न सभा'...
अच्छी प्रस्तुति। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।
ReplyDeleteमेरे कदम उस रोशनी से दूर जा रहे थे,
ReplyDeleteकुछ और नहीं, पर अँधेरे अवश्य पास आ रहे थे...
Behad dardbhari rachana hai!
हिंदी में आपका लेखन सराहनीय है.... इसी तरह तबियत से लिखते रहिये.. धन्यवाद.
ReplyDeleteधन्यवाद...
ReplyDeleteइस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteReal world ka chehra h ye swapna sabha.....
ReplyDeleteawesome presentation of today's world
ReplyDeleteThank U So Much, Di !!
ReplyDelete:)